शुक्रगुजार हूँ उस अनन्त शक्ति की जिसने मुझमें अपना ही एक छोटा कण डालकर जीवन दिया । अनेकों बार, अनेकों रूप धर कर अपने साथ होने का एहसास जगाये रखा। उसका और उसके अनेक रूपों की शुक्रगुजार हो ।
शुक्रगुजार हूँ उस शक्ति की बनाई उस प्रकृति की जिसकी गोद में बैठकर खुद से आती आवाजों को ठीक-ठीक सुन पाई ।
शुक्रगुजार हूँ उसके अनेक रूपों में एक रूप अपने माता-पिता श्रीमती सरोज शुक्ला - श्री सुबोध कुमार शुक्ला का, जिनकी नरम धूप तले जीवन की सर्द हवाओं से राहत मिलती रही हर बार।
पापा, जब कभी जीवन की उठा-पटक से घबराकर आपको फोन किया है और दूसरे छोर से आती आपकी ठहरी हुई आवाज ने कहा ‘‘कुछ नहीं है भाई बेकार का टेंशन लेती हो ।’’ बस उसी वक्त सारी परेशानी गुम हो जाती है। ये मंत्र है आपका ‘‘खुल जा सिम-सिम’’ जैसा उसी वक्त मुसीबतों के पहाड़ों के बीच हजारों दरवाजे खुलते चले जाते हैं।
Publisher : Onlinegatha
Edition : 1
Number of Pages : 67
Binding Type : Ebook , Paperback
Paper Type : Cream Paper(70 GSM)
Language : Hindi
Category : Fiction
Uploaded On : September 6,2019
Partners
:
Flipkart ,
Kraftly ,
Smashwords ,
Amazon ,
Kobo ,
Payhip
NA