अनुजा मृदुला श्रीवास्तव को समर्पित जो अकारण और अचानक ही हमसे विमुख होकर दिनांक: 03 दिसंबर, 2014 को अपनी स्मृतियों की भूलभुलैया में हमें भटकने के लिए अकेला छोड़ गई |
नाट्य विधा या नाट्य कला से मेरा बचपन का रिश्ता रहा है। दरअसल, बचपन और कैशोर्य में मुझे मंचों पर जाने का अवसर मिलता रहा है। रामलीला, कृष्णलीला, राजा हरिश्चंद्र आदि जैसी पारंपरिक मंच-प्रस्तुतियों में मुख्य भूमिकाओं में अभिनय करना मेरे लिए आश्चर्य-मिश्रित सुखद अनुभव रहा है। स्थानीय स्तर पर कुछ नाट्य समितियाँ जैसे रामलीला समिति, कृष्णलीला समिति आदि सक्रिय रहती थीं जिनके पास नाट्य प्रस्तुतियों के लिए कुछ बुनियादी सुविधाएं और साधन उपलब्ध रहते थे। ये समितियाँ न केवल राम और कृष्ण के जीवन-चरित पर आधारित मंच-प्रस्तुतियाँ करती थीं अपितु कतिपय अन्य पौराणिक घटनाओं पर भी नाटकों का आयोजन करती थीं। ऐसी मंच-प्रस्तुतियों में एक ख़ास बात ये रहती थी कि कोई प्रशिक्षक अथवा अनुभवी व्यक्ति हमें अभिनय-कला के संबंध में मार्गदर्शन करने के लिए उपलब्ध नहीं होता था। बस, हमें यह बता दिया जाता था कि हमें अमुक किरदार की भूमिका निभानी है और फिर हमें पाठ के संवाद की पांडुलिपियाँ/प्रतियाँ सौंप दी जाती थी। हम विभिन्न किरदारों की भूमिका निभा रहे अन्य साथियों के साथ अपने-अपने पाठ कंठस्थ करते थे और संवाद (डॉयलाग) विनिमय करते हुए अभिनय के गुर स्वयं सीखते थे।
Publisher : Onlinegatha
Edition : 1
Number of Pages : 175
Binding Type : Ebook
Paper Type : creme
Language : Hindi
Category : Fiction
Uploaded On : February 11,2015
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